मंदिर की ज्योति

मंदिर की ज्योति

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जब डाइस बोले तो सांव का नहीं

When I Stopped Chasing Wins, I Began to Win: A Quiet Game of Self in the Digital Arena

जब मैंने डाइस को फेंका… पर विजयी के लिए नहीं! \nडाइस सिर्फ़ एक हथिया है — पर मैंने सुन्नत की। \nजब मैंने ‘प्रेजेंट’ को ‘एल्गोरिदम’ में पढ़ा… \nतभी पता चला: ‘विन’ का मतलब… \nखुद ही है! 😌\nअगर आपको भी समझ में ‘चेसिंग’ करने का मन है… \nकमेंट करो: ‘डाइस’ कहाँ है?

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2025-10-22 02:55:35

مقدمة شخصية

मंदिर की ज्योति — दिल्ली की एक साध्वी, जो ने मंदिरों के सपनों को गेम्स में बदल दिया। मैं हिंदू मनोविज्ञान, प्राचीन पौराणिकथाओं, और सुखद समय के सच्चे सुरागों को हर पलट में समेट करती हूँ। हर घूमता, हर पहिला — मेरे पास है। आपका सपना, मेरा सफ़र। 🌙✨